द गर्ल इन रूम 105–३९
एग्ज़ैक्टली । यदि अमीर लोग भी सुरक्षित नहीं हैं तो पुलिस कर क्या रही है?' अरिजीत ने कहा। भूतपूर्व पुलिस अधिकारी ने कम से कम ऐसी बात कही जिससे पुलिस को जांच में मदद मिलती, लेकिन समाजसेविका ने उन्हें चुप करा दिया। भूतपूर्व आईआईटी प्रोफ़ेसर को तो एक शब्द बोलने का भी मौक़ा नहीं मिला। एक कांस्टेबल आया और मेरा कंधा झकझोरकर मुझे कहा, राणा सर तुम्हें बुला रहे हैं।"
'तुम्हारे पैरेंट्स ने कॉल किया था। वे तुमसे संपर्क करने की कोशिश कर रहे हैं,' राणा ने कहा। उनकी आवाज़ पहले
से
शांत लग रही थी।
'सॉरी, फ़ोन मुझसे दूर था, मैंने कहा। वैसे भी अभी मैं अपने पैरेंट्स से बात नहीं करना चाहता था
'वे लोग अलवर से आ रहे हैं। चंद घंटों में यहां पहुंच जाएंगे।' 'डैम।'
"क्या?"
'कुछ नहीं।'
'तुम्हारे दोस्त को भी यहां ले आओ। बात करनी है।" मैं सौरभ को नींद से उठाकर ले आया।
"यह एक बड़ा मामला बन गया है। नेशनल न्यूज़,' राणा ने कहा।
'मैं जानता हूं, सर।'
'क्या? कैसे जानते हो?" *मैंने टीवी पर देखा। रिपोर्टर्स और वही सब।'
मैंने उनसे कोई बात नहीं की, सर जब मैं बाहर कुछ खाने जा रहा था तो उन्होंने मुझे घेर लिया। मैं उनसे
बचकर अंदर चला आया।' "तुमने सुबह से कुछ खाया?"
सौरभ ने जोर से अपना सिर हिलाकर ना कहा। इंस्पेक्टर राणा ने एक चपरासी को बुलाकर कुछ स्नैक्स लाने को कहा। वह दो कप चाय और आलू पकौड़े लेकर लौटा। इंस्पेक्टर ने हमें खाने को कहा। मैं धीरे-धीरे खाने लगा।
"तुम्हारे पिता की मुझसे बात हुई। वो राजस्थान में क्या हैं-आरएसएस के प्रधान सेवक?" "हां, वही। उन्होंने दक्षिण दिल्ली के सांसद से भी बात की है। हौज खास उन्हीं के एरिया में आता है।'
अब जाकर मुझे राणा की बदली हुई टोन और इन चाय और पकौड़ों का राज समझ में आया। भारत में कोई भी अफ़सर केवल अपने से ऊपर बैठे अधिकारी की ही सुनता है।
'तुम्हारे पॉलिटिकल कॉन्टैक्ट्स के कारण तुम्हें रियायत नहीं दी जाएगी। ज़रूरत पड़ी तो हम और ज़्यादा सख्ती ही बरतेंगे,' राणा ने जैसे मेरा दिमाग़ पढ़ते हुए कहा ।
थे।
"जी, सर। लेकिन हम लोगों ने सच में ही कुछ नहीं किया है, सौरभ ने कहा। ये सुबह से उसके पहले शब्द
"हां, अगर तुम लोगों ने सच में ही कुछ भी नहीं किया है, केवल तभी तुम बच सकते हो,' इंस्पेक्टर ने कहा । "यह केस अब टीवी पर आ गया है। अगर मीडिया ने यह कह दिया कि आरोपी के कनेक्शंस के कारण उसके साथ नर्मी बरती जा रही है तो मेरी मुसीबत हो जाएगी।' तो क्या मैं आरोपी था? नहीं, यह तो ग़लत था।
"सर, आरोपी?" मैंने हैरत से कहा ।
"मेरा मतलब है अगर तुम आरोपी होते तो परिस्थितजन्य साक्ष्य तो मौजूद हैं। लेकिन शुक्र है कि अब हमारे पास कुछ और ऐसी इंफॉर्मेशन हैं, जिससे तुम्हें मदद मिल सकती है।'